विध्वंसकारी सोच- पुरातत्त्व नष्ट हो ही जाना चाहिए : सुरेन्द्र भारती






विध्वंसकारी सोच- पुरातत्त्व नष्ट हो ही जाना चाहिए : सुरेन्द्र भारती 


सम्पूर्ण जैन पुरातत्त्व को नष्ट कर देना चाहिए, केवल जिनकी पूजा हो सकती है उन्हें ही बचा कर रखना चाहिए। ये विचार प्रस्तुत किये एक विद्वत् सम्मेलन में डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन ‘भारती’, बुरहानपुर ने।


पुरातत्त्व की सुरक्षा पर एक राष्ट्रीय विद्वत्सम्मेलन चल रहा था, उस में बुरहानपुर के कथित पत्रकार व विद्वान् डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन ‘भारती’ ने कहा- ‘‘बहुत कहा जाता है- पुरातत्त्व नष्ट हो रहा है! पुरातत्त्व नष्ट हो रहा है!! पुरातत्त्व नष्ट हो रहा है!!! पुरातत्त्व नष्ट हो ही जाना चाहिए, क्या होता है पुरातत्त्व से? पुरातत्त्व के लिए कहा यदि जीवन्त प्रतिमा है तो उसे पुरातत्त्व विभाग नहीं ले सकता.. पुरातत्त्व वह है जिसे पूजें आप..।’’ इनका कहना है जो यदाकदा पुरातत्त्व पर लिखते रहते हैं वह सब फालतू है। उनके इस विध्वंसकारी वक्तव्य पर जब प्रश्न किया गया कि किसी भी समाज के उपलब्ध साक्ष्य ही उसकी संस्कृति की प्राचीनता और पूर्व में अस्तित्व होने के प्रमाण होते हैं। तब उत्तर में डॉ. भारती द्वारा कहा गया कि ‘जो पूज्य प्रतिमाएं हों केवल उन्हीं को बचाना चाहिए, शेष पुरातत्त्व नष्ट कर देना चाहिए।’ 

ज्ञातव्य है कि इसी तरह के वक्तव्यों से प्रेरणा लेकर जैनों के द्वारा जीर्णाेद्धार के नाम पर अपनी ही अनेक मूर्तियां नष्ट की जा रहीं हैं। 4-5 वर्ष पूर्व  खंदारगिरि की एक हजार वर्ष प्राचीन, और लगभग 36 फीट उत्तुंग आईकान प्रतिमा को तोड़ दिया गया। आज तक उसका कुछ नहीं किया गया। जिन्होंने उसके स्वरूप को देखा है वे दंग हैं। कई लोगों को तो अभी ज्ञात ही नहीं है कि खंदारगिरि की वह प्राचीन प्रतिमा ध्वस्त कर दी गई है।